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मकर संक्रांति: त्योहार की मिठास और बचपन की यादों का सुनहरा संगम!

  • January 14, 2025
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Author: Bihar Say | Amrita | मकर संक्रांति का नाम सुनते ही मन में एक अनोखी खुशी और बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं। वो ठंडी सर्दियों

मकर संक्रांति: त्योहार की मिठास और बचपन की यादों का सुनहरा संगम!

मकर संक्रांति का नाम सुनते ही मन में एक अनोखी खुशी और बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं। वो ठंडी सर्दियों की सुबहें, जब सूरज की पहली किरण भी जैसे देरी से आने का वादा करती थी। घर में त्योहार का माहौल पहले ही दिन भर की तैयारी से बस जाने लगता था।

सुबह-सुबह ठंडे पानी से नहाने की चुनौती को जीतने का साहस सिर्फ मकर संक्रांति के दिन ही आता था। दादी-मां का कहना था कि आज गंगा स्नान का पुण्य घर पर ही नहाने से मिल जाएगा। नहाने के बाद शरीर को गर्म रखने के लिए अगींठी के पास बैठकर हाथ सेंकना, और फिर भगवान के चरणों में शीश झुकाकर पूरे साल के लिए आशीर्वाद मांगना—ये सब कुछ आत्मा को नई ऊर्जा से भर देता था।

फिर आता था वो पल जिसका हर किसी को इंतजार रहता था—चूड़ा-दही का। ताजे दही की ठंडी मलाई और गुड़ की मिठास से सजी हुई थाली जब सामने आती थी, तो भूख अपने आप दोगुनी हो जाती थी। साथ में दादा जी से सुनाई जाने वाली कहानियां, जो त्योहार की परंपराओं और उसके महत्व को समझाती थीं, वो स्वाद को और भी खास बना देती थीं।

गांव के बच्चे अपने-अपने पतंग लेकर मैदान में दौड़ पड़ते थे। “काट दिया, काट दिया!” की आवाजें और आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों का नजारा दिल को खुश कर देता था। दोपहर को घर लौटने पर चूरा – मटर और तिल- तिलकुट की मिठास जैसे त्योहार को पूरा कर देती थी।

आज भी मकर संक्रांति आती है, चूड़ा-दही खाने की परंपरा निभाई जाती है, लेकिन वो बचपन वाला मासूमियत भरा आनंद कहीं खो गया है। वो सुबह-सुबह की हंसी-मजाक, वो पतंगों की लड़ाई और वो दादी का प्यार भरा आदेश, “दही खत्म करना पड़ेगा, नहीं तो भगवान नाराज हो जाएंगे”—ये सब यादें दिल के किसी कोने में आज भी संजोई हुई हैं।

त्योहार सिर्फ रीति-रिवाज नहीं होते, वो बचपन की यादों का खजाना होते हैं। आज मकर संक्रांति के इस शुभ दिन पर चूड़ा-दही खाते हुए उन सुनहरी यादों को जीने की कोशिश कीजिए और अपने परिवार के साथ वो सुकून के पल फिर से बांटिए।

आप सभी को @Bihar Say मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!

 

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